उत्तराखंड

साहित्यकार बेंजवाल दम्पति को मिलेगा हिमवन्त साहित्य सम्मान

खुशी

20 अगस्त को कवि चन्द्रकुंवर के जन्मदिन पर राइंका अगस्त्यमुनि में होगा भव्य कार्यक्रम

रुद्रप्रयाग। हिमवन्त कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की स्मृति में दिया जाने वाला मन्दाकिनी घाटी का प्रतिष्ठित हिमवन्त साहित्य सम्मान इस बार कवि की कर्मस्थली के दो विद्वान साहित्यकार दम्पति बीना बेंजवाल एवं रमाकान्त बेंजवाल को संयुक्त रूप से दिया जाएगा। कवि के जन्मदिन 20 अगस्त को अटल उत्कृष्ट राइंका अगस्त्यमुनि में होने वाले एक भव्य समारोह में यह सम्मान दिया जाएगा। चन्द्रकुंवर बर्त्वाल स्मृति शोध संस्थान अगस्त्यमुनि की बैठक में यह फैसला लिया गया।

गढ़वाली लोकगीत, लोकनृत्य एवं कवि की कविताओं का होगा स्वर पाठ

बैठक में हुई कार्रवाई की जानकारी देते हुए संस्थान के अध्यक्ष हरीश गुसाईं ने बताया कि विश्व व्यापी कोरोना महामारी की विभीषिका के कारण बीते दो वर्षों में यह कार्यक्रम नहीं हो पाया था। किंतु अब, जब कोरोना का असर कम हो गया है, तो एक बार पुनः नए जोश के साथ संस्थान कवि के जन्मदिन को भव्य तरीके से मनाने जा रहा है। राइंका अगस्त्यमुनि में होने वाले मुख्य कार्यक्रम में छात्र छात्राओं की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए गढ़वाली लोकगीत पर आधारित लोकनृत्य, कवि की कविताओं का सस्वर पाठ तथा निबन्ध प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। जिसमें प्रथम पांच स्थानों पर आने वाले प्रतिभागियों को आकर्षक पुरूस्कार दिए जाएंगे।

अगस्त्यमुनि में हुई चन्द्रकुंवर बर्त्वाल स्मृति शोध संस्थान की बैठक

कार्यक्रम में हिन्दी-गढ़वाली भाषा साहित्य में उल्लेखनीय योगदान देने वाले बेंजवाल दम्पति श्रीमती बीना बेंजवाल एवं रमाकान्त बेंजवाल को संयुक्त रूप से हिमवन्त साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। मूल रूप रुद्रप्रयाग जिले के बेंजी गांव के निवासी साहित्यकार दम्पति हिन्दी-गढ़वाली भाषा में अनेक पुस्तकें, लेख और कविताए सृजित कर चुके है। गढ़वाल के साहित्य की बात करें तो केन्द्रीय विद्यालय श्रीनगर से सेवानिवृत्त शिक्षिका बीना बेंजवाल ने गढ़वाली-हिन्दी साहित्य को उत्तराखंड ही नहीं अन्य राज्यों के मंचों पर भी प्रदर्शित किया है।

साहित्यकार बीना बेंजवाल और रमाकांत बेंजवाल को मिलेगा हिमवन्त साहित्य सम्मान

आज उनकी कवितायें और गढ़वाली हिन्दी अंग्रेजी शब्दकोश देश ही नहीं विदेशों में भी लोग उत्सुकता के साथ पढ़ रहे है। बीना बेंजवाल ने 1987 में पहली कविता जिदंगी लिखी। 1995 में हिन्दी कविता संग्रह मुट्ठी भर बर्फ, 1996 में गढ़वाली कविता संग्रह कमेड़ा आखर, 2007 में अरविन्द पुरोहित के साथ गढ़वाली हिन्दी शब्दकोश, 2018 में पति रमाकांत बेंजवाल के साथ गढ़वाली हिन्दी अंग्रेजी शब्दकोष लिखा। वर्ष 2021 में उन्होंने देश विदेश की 54 महिलाओं की कविताओं का गढ़वाली अनुवाद कर मिसेज रावत नाम से पुस्तक निकाली। इसके अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी उनके कार्यक्रम नियमित प्रसारित होते है। लोकभाषा के लिए उन्हें 1996 में आदित्य नवानी भाषा प्रोत्साहन सम्मान, 2011 में पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल भाषा सम्मान, 2018 में कन्हैयालाल डंडरियाल लोकभाषा सम्मान समेत 10 से भी अधिक सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वहीं उनके पति रमाकान्त बेंजवाल राजभवन पुस्तकालय में कार्यरत है। पिछले ढाई दशक से भी अधिक समय से गढ़वाली भाषा और साहित्य के लिए एक मिशन के रूप में कार्य कर रहे हैं। उनके द्वारा इससे पूर्व पांच पुस्तकें सम्पादित एवं प्रकाशित की गई हैं। उनके द्वारा लिखित गढ़वाल हिमालय पर्यटन प्रेमियों के लिए जितनी उपयोगी रही उतनी ही धार्मिक यायावरियों के लिए नंदा देवी राजजात लोकप्रिय रही। सन् 1959 में डा0 गोविन्द चातक द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘गढ़वाली भाषा’ तथा सन् 1976 में डा0 हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ की पुस्तक ‘गढ़वाली भाषा और उसका साहित्य’ के बाद गढ़वाली भाषा पर आधारित कोई मानक और उपयोगी पुस्तक प्रकाश में आयी है तो वह है, रमाकांत बेंजवाल हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘गढ़वाली भाषा की शब्द-संपदा बेहद चर्चा में रही। वह इसलिए क्योंकि उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद गढ़वाली भाषा पर आधारित पहली ऐसी पुस्तक प्रकाशित हुई जिसने आम पाठक को गढ़वाली बोलने एवं सीखने के लिए प्रेरित किया है। बैठक में संस्थान के सचिव सुधीर बर्त्वाल, उपाध्यक्ष गिरीश बेंजवाल, कोषाध्यक्ष कालिका काण्डपाल, सहसचिव कुसुम भट्ट, सदस्य गंगाराम सकलानी, दीपक बेंजवाल, ललिता रौतेला आदि मौजूद रहे।

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