मनणामाई की 32 किमी पैदल यात्रा धार्मिक और रोमांचक से भरी
देहरादून। उत्तराखंड को देवभूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता है। यहां के धार्मिक पर्व, तीज-त्यौहार के साथ ही धार्मिक और अनूठी यात्राएं भारतवर्ष में उत्तराखंड को अलक पहचान दिलाती है। हालांकि सरकारी स्तर पर भले ही इन धार्मिक यात्राओं को विशेष महत्व नहीं दिया गया हो किंतु ऐसी कई यात्राएं हैं जो अनोखी, अदभुत और धार्मिक भावनाओं को ओत-प्रोत हैं। उन्हीं में 32 किमी पैदल मार्ग से होते हुए मनणा धाम पहुंचने वाली मां मनणामाई लोकजात यात्रा भी शामिल है।
अदभुत और विशेष है देवभूमि की धार्मिक परम्पराएं
मदमहेश्वर घाटी के रांसी स्थित राकेश्वरी मंदिर से इस भव्य यात्रा का शुभारंभ किया जाता है। पांच दिवसीय यात्रा रांसी गांव से 32 किमी दूर उत्तर दिशा में मनणी बुग्याल की ओर प्रस्थान करती है। हिमालय की गोद में मनणी बुग्याल में महेश मर्दनी का मंदिर मौजूद है। पत्थरों से बना यह मंदिर आज भी पौराणिक रूप में अवस्थित है। इस दुर्गम स्थान तक पहुंचने के लिए कठिन तपस्या के बीच होकर गुजरना पड़ता है। मानों संसारी माया मोह से काफी दूर चले जाना। सनियारा सहित अन्य हरे भरे बुग्याली क्षेत्रों के साथ यहां के प्राकृतिक सुंदरता के बीच पूरी तरह अलग अनुभूति का अहसास होता है। अनेक जड़ी बूटी, दुर्लभ पशु पक्षी और रंग-बिरंगे हिमालयी पुष्पों की सुंदरता देखते ही बनती है। यह यात्रा पूरी तरह अटूट आस्था और मदमहेश्वर घाटी की धार्मिक भावनाओं से जुड़ी है। नंदा राजजात मार्ग की तरह यहां भी शिलासमुद्र है। रास्ते में सिद्धविनायक के दर्शन भी होते हैं। उत्तराखंड के साथ ही देश के अन्य राज्यों को इस क्षेत्र की विशेष जानकारी नहीं है इसलिए यहां अन्य क्षेत्रों के श्रद्धालु जात में शामिल नहीं हो पाते। महज रांसी गांव के लोग ही उत्साह से भागीदारी करते हैं।
यह है पवित्र स्थान की मान्यता-
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब प्राचीनकाल में देवताओं और दानवों के बीच युद्ध हुआ। तो इसमें देवता पराजित हुए व इंद्रलोक पर महिषासुर का राज हो गया। तब सभी देवताओं ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश की अराधना की और दानवों से सुरक्षा मांगी। इसी बीच देवी की उत्पत्ति हुई। इसी देवी ने मनणी नामक स्थान पर महिषासुर का वध किया। इसलिए इस दिव्य स्थान का नाम मनणा पड़ गया।
इस बार 21 जुलाई से होगी लोकजात यात्रा शुरू
मदमहेश्वर घाटी में रांसी स्थित मां राकेश्वरी मंदिर से शुरू होने वाली 32 किमी लंबी मनणीमाई की लोकजात को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है। पांच दिवसीय जात यात्रा में मां मनणा की विशेष पूजा अर्चना की जाएगी जिसके बाद यात्री दल मनणीधाम को रवाना होगा। रांसी मंदिर के पुजारी वीपी भट्ट ने बताया कि मदमहेश्वर घाटी में मनणामाई की लोकजात रांसी से 32 किमी की लंबी उत्तर दिशा की ओर मनणी बुग्याल तक जाती है। बताया कि लोकजात इस बार 21 जुलाई गुरुवार से शुरू होगी। पहले दिन मनणी की भोगमूर्ति के साथ स्थानीय लोग रांसी गांव से यात्रा के साथ पहले पड़ाव थोली बुग्याल पहुंचेगे। 22 जुलाई से थौली से मनणी नदी को पैदल पार करते हुए अपने धाम मनणी बुग्याल पहुंचेगी। 23 जुलाई को प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में मां की भोगमूर्ति को पूजा अनुष्ठान के मंदिर में स्थापित किया जाएगा। भव्य पूजा-अर्चना के बाद देवी की मूर्ति को ब्रह्म कमलों तथा अन्य पुष्पों से ढका जाएगा। इसी दिन लोकजात रात्रि विश्राम के लिए वापस थौली पहुंचेगी। 24 जुलाई को यात्रा सनियारा बुग्याल पहुंचेगी। 25 जुलाई को रांसी गांव के राकेश्वरी देवी मंदिर में लोकजात का समापन होगा।
————