उत्तराखंड

भाषाएं नई पीढ़ी तक पहुंचाना समाज की जिम्मेदारी  

मातृभाषा सप्ताह

भाषाएं नयी पीढ़ी तक पहुंचाना समाज की जिम्मेदारी   

धाद की पहल स्वागत योग्य : पद्मश्री डॉ माधुरी             

धाद और रूम टू रीड के मातृभाषा सप्ताह का शुभारम्

नई पीढ़ी को कहानी सुनाने की बात और उत्तराखंड की भाषाओं की कविताओं का विमोचन के साथ अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी के निमित्त धाद मातृभाषा सप्ताह का शुभारम्भ स्मृतिवन मालदेवता में हुआ। जहाँ बच्चों के साथ काम कर रही अंतर्राष्ट्रीय संस्था रूम टू रीड ने नयी पीढ़ी को उनकी भाषाओं में कहानी सुनांने की कार्यशाला आयोजित की। आयोजन में धाद कवितांक का विमोचन और पद्मश्री डॉ माधुरी बडथ्वाल का सम्मान भी किया गया।

आयोजन का शुभारम्भ करते हुए रूम तू रीड की स्टेट हेड पुष्पलता रावत ने कहा की उनकी संस्था ने यह महसूस किया है कि बच्चों में पढने की आदत विक्सित करने में उनकी अपनी भाषा का एहम भूमिका रहती है उसकी यादें उसकी स्मृतियाँ जितनी उसकी भाषा में होती है उतना कहीं नही.इसलिए बाल साहित्य का स्थानीय भाषा में होना बहुत महत्पूवपूर्ण है इस दिशा में प्रयास करते हुए उन्होंने विभिन्न कहानियों की स्थानीय भाषा में कार्ड जारी किये है जो स्थानीय भाषा के साथ स्थानीय बिम्बों पर आधारित है।

धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा कि भाषा की चिंता में जन्म हुआ धाद और यह संवेदनशीलता ने उसकी चिंता में उत्तराखंड के विभिन्न सवालों को शामिल किया 1987 में जब धाद ने भाषा के सवाल पर काम किया तब इस बाबत चेतना का अभाव था लेकिन इन 36 सालों में धाद ने इस सवाल के पक्ष में व्यापक वातावरण बनाने में भूमिका अदा की है आज प्रचुर मात्र में उत्तराखंड की भाषा में साहित्य लिखा जाता है अब इसको बच्चों तक ले जाने की पहल किये जाने की जरुरत है।
सत्र की संचालक रोहिणी ने कहानी का वाचन का प्रत्यक्ष प्रस्तुतीकरण किया और बताया की कहानी वाचन के माध्यम से बच्चों में पड़ने की आदत का विकास होता है जरुरी है की बच्चों के साथ कहानी वाचना स्वछन्द रूप से हो जिसमें सभी बच्चों कको प्रतिभाग करने के पूर्ण अवसर दिए जाए जिसे बच्चों में सृजन कल्पना शक्ति के साथ विचार अभिव्यक्त करन एकी क्षमत अविकसित होती है कहानी वाचन से बच्चों के प्रति लगाव पैदा होता है और वो सुनी गयी कहानी को ढूंढ कर पड़ते है कहानी वाचन बच्व्चों की अपनी भाषा सहभाषा से जुड़ने का अवसर पैदा हो।


मुख्य अतिथि डॉ माधुरी बड़थ्वाल ने कहा केवल अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना कर हमें निश्चित होकर नहीं बैठना चाहिए हर व्यक्ति को वैराग्य भाव से अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहिए वह चाहे व्यापारिक रूप में हो या शास्त्रीय रूप में बोली भाषा को व्यावहारिक रूप में भावी पीढ़ी तक पहुंचाना चाहिए अपनी मातृभाषा दूध बोली को जब तक व्यवहार में नहीं लाएंगे तब तक प्रगति नहीं हो सकती। जिससे हमारी बोली भाषा समृद्ध हो धाद संस्था के अथक परिश्रम से बोली भाषा को संजीवनी मिलती रही है इस क्षेत्र में धाद का बहुत ही सराहनीय प्रयास हमेशा से रहा है।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उत्तराखंड लोक भाषाओं की पुस्तक का विमोचन किया गया जिसमें प्रदेश की विभिन्न भाषाओं की कविताओं को संकलित किया गया है कवियों ने ही इसके पश्चात कविता पाठ किया। कवियों में प्रमिला रावत उनकी रचना धरती त्वै थै मि नमन करदु।हेमवती नंदन भट्ट हेमू की कविता- मुल्क चली जौंला। सत्येंद्र चौहान सोशल गैरसेंण पर कविता सुनाइए,रक्षा बढ़ाई की कविता तू अभागी निछै, सुशील चंद्र की कविता विकास ह्वेत ग्याई, शांति प्रकाश जिज्ञासु की कविता ल्हेवकार बिना कंडर की कविता तूतरा- शांति बिंजोला की कविता बीज के अलावा 20 कवियों ने कविता पाठ किया
कार्यक्रम की अध्यक्षता धाद के केंद्रीय अध्यक्ष व लोक भाषा आन्केदोलन के सूत्रधार श्री लोकेश नवानी जी ने की उन्होंने कहा कि भाषाओं का सौंदर्य मूलत भाषा और संस्कृति के सौंदर्य का आनंद है इसे बचाया जाना चाहिए यही दुनिया की सांस्कृतिक विविधता है और यह अपने आप में बहुत अनमोल है क्योंकि भाषा संस्कृति का निर्माण एक लंबे कालक्रम के बाद होता है इसलिए उन्हें बचाए जाना हम सबका दायित्व है।
कार्यक्रम के संयोजक शांति प्रकाश जिज्ञासु थे। इस कार्यक्रम में उपस्थित लोग सदस्यगण श्रीमती बीना कंडारी, शांति बिंजोला, प्रेमलता सजवाण, लक्ष्मण सिंह रावत, डॉक्टर आशा रावत, मुकेश हटवाल,  मुकेश हटवाल, रमाकांत बेंजवाल, राजीव पाथरी, विजय जुयाल, सुशील चंद्र, रिद्धि भट्ट, लोकेश गैरोला, लक्ष्मी प्रसाद बडोनी, सत्येंद्र चौहा, पुष्प लता रावत, संतोष कुमार पंकज ध्यानी, बीना बेंजवाल मौजूद थे।

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