पूज्य मोरारी बापू ने दिया 12 ज्योर्तिलिंग राम कथा को विराम
रुद्रप्रयाग। प्रसिद्ध कथाकार एवं राष्ट्रीय संत पूज्य मोरारी बापू द्वारा देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में राम कथा का आयोजन करते हुए इसे पवित्र केदारनाथ धाम से शुरू करते हुए गुजरात के तलगाजरडा में समापन किया गया। इस दिव्य आयोजन के लिए करीब 12000 किमी से भी अधिक की यात्रा महज 18 दिनों में पूरी की गई। जो अपने आप में अनोखी पहल है।
महज 18 दिनों में की गई 12 हजार किमी से भी अधिक की यात्रा
बापूजी ने 22 जुलाई को पवित्र 12 ज्योर्तिलिंग राम कथा का शुभारंभ किया जबकि 8 अगस्त को गुजरात के तलगाजरडा में बापू के चित्रकुटधाम में सोमनाथ के तट पर कथा को विराम दिया। यह समय भक्तों के लिए आध्यात्मिकता और आत्मखोज का एक अनूठा अनुभव रहा। पूज्य मोरारी बापू ने सनातन धर्म के शैव और वैष्णवों सहित विभिन्न समूहों और समुदायों के बीच सदभाव और सह-अस्तित्व के बीज बोने के लिए 12 ज्योतिर्लिंगों में राम कथा के शब्दों का प्रचार करने की पहल की। इस मौके पर 1008 भक्तों को राम कथा सुनने के साथ-साथ सभी 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का भी अवसर प्रदान हुआ। भक्तों को उत्तराखंड में केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, काशी में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र में नागेश्वर, भीमाशंकर, त्रयंबकेश्वर और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग और अंत में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का पवित्र अवसर मिला। भक्तों ने पवित्र धामों, ऋषिकेश, जगन्नाथ पुरी, तिरूपति बालाजी और द्वारकाधीश धाम के दर्शन का भी अनुभव लिया। यात्रा के उद्देश्य के बारे में बताते हुए पूज्य बापू ने कहा कि तीर्थयात्रा निश्चित रूप से ज्योतिर्लिंगों, धामों और अन्य सभी पवित्र हिंदू स्थलों सहित सनातन धर्म की पवित्रता और भक्ति के केंद्रों को फिर से जीवंत करने में मदद करेगी। बापू ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि सभी मंदिर पहले से ही शुद्ध और पवित्र हैं, उन्हें भी साफ और बेहतर व्यवस्थित रखने की जरूरत है ताकि आम आदमी भी आसानी से उन तक पहुंच सके और आंतरिक शांति और दिव्यता के साथ संबंध पाने के लिए दर्शन प्राप्त कर सके।
पवित्र केदारनाथ धाम से शुरू हुई दिव्य कथा का गुजरात के तलगाजरडा में हुआ समापन
बापू ने यह भी कहा कि स्वच्छ भारत को बढ़ावा देने और काशी और उज्जैन में भव्य गलियारे बनाने के सरकार के प्रयासों को अन्य प्रमुख तीर्थस्थलों के नवीनीकरण के मॉडल के रूप में देखा जाना चाहिए। इस कथा के माध्यम से बापू ने एक भारत, श्रेष्ठ भारत के विचार का भी उत्सव मनाया और अमृतकाल के तहत चल रहे उत्सवों के बीच भारत की सांस्कृतिक विविधता की ओर ध्यान आकर्षित किया। कई संतों का मानना है कि आत्म-साक्षात्कार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है, पर बापू का मानना है कि एक साधु को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। जबकि उसके भीतर के दीपक को प्रज्ज्वलित करने का प्रयास करना चाहिए। कई मायनों में, ज्योतिर्लिंग राम कथा यात्रा देश के चार कोनों उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में लोगों से जुड़ने और उन्हें आध्यात्मिक उत्साह प्रदान करने का एक प्रयास था। कथा के अंतिम दिन, बापू ने इस बात पर जोर दिया कि 12ज्योतिर्लिंग राम कथा यात्रा सांस्कृतिक एकता एवं राष्ट्रीय एकता लाने की एक पहल थी। इस महत्वपूर्ण 12 ज्योतिर्लिंग राम कथा रेल यात्रा को आईआरसीटीसी के सहयोग से दो विशेष ट्रेनों कैलाश भारत गौरव और चित्रकूट भारत गौरव ट्रेनों द्वारा सुविधाजनक बनाया गया था। कथा का आयोजन आदेश चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से इंदौर के बापू के पुष्प (भक्त) रूपेश व्यास द्वारा किया गया था।