बसंत के गीत गाकर बच्चे कर रहे सुख शांति और समद्धि की कामना
बसंत के आगमन के साथ उत्तराखंड के सभी जिले में बच्चों का मुख्य त्यौहार फूलदेई उत्सव शुरू हो गया। सोमवार से सभी 13 जनपदों के गांव और शहरों में बच्चों ने बसंत के गीत गाकर मठ-मंदिर एवं घरों की चौखट पर फूल डालने शुरू कर दिए है। आठवें दिन बच्चे प्रत्येक घर से खाद्य सामग्री एकत्रित कर सामूहिक भोज का आयोजन करेंगे।
देवभूमि उत्तराखंड में सभी स्थानों पर फूलदेई उत्सव की बसंत के आगमन के साथ शुरूआत हो गई है। बीते रविवार को ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों ने बुरांश, पय्यां, फ्यूंली के फूल एकत्रित किए। जो सोमवार सुबह सवेरे ही बच्चों ने बंसत के गीतों के साथ फूल डालना शुरू किया। जिले में बच्चों ने घोघा देवता की डोली एवं बसंत के गीतों के साथ ही मठ-मंदिर व घरों की चौखट फूल डाले। जबकि कई स्थानों पर बिना डोली के ही फूल डालने की परम्परा आज भी कायम है। सुबह सवेरे बच्चो का शोर ग्रामीणों को जगाने का कार्य भी कर रहा है। फूलदेई उत्सव को लेकर छोटे छोटे बच्चों में काफी उत्साह दिख रहा है। घरों की चौखट पर फूल डालने का यह क्रम आठ दिनों तक चलेगा। आठवें दिन बच्चे हर परिवार से भोजन सामग्री एकत्रित कर सामूहिक भोज का आयोजन करेंगे। पहले घोघा देवता की पूजा अर्चना कर भोग लगाएंगे। उसके बाद ही भोजन का ग्रहण करेंगे। उत्तराखंड के इस लोकपर्व को लेकर सभी जगहों पर उत्साह का माहौल है। बच्चे झुंड बनाकर सुबह सुबह फूलदेई से जुड़े गीतों को गुनगुनाते हुए सुख समृद्धि की कामना कर रहे हैं।
स्कूलों में भी मनाया गया फूलदेई पर्व
शिक्षा विभाग के मण्डलीय अपर निदेशक गढ़वाल मण्डल महावीर बिष्ट की पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने के लिए इस वर्ष से गढ़वाल मण्डल के समस्त विद्यालयों में फूलदेई पर्व मनाने के निर्देश दिए थे। जिसमें राइंका अगस्त्यमुनि, राबाइंका अगस्त्यमुनि, राइंका पठालीधार, राप्रावि चमेली, राउप्रावि गिंवाला समेत जिले के सभी विद्यालयों में छात्र छात्राओं ने घोघा माता की डोली के साथ प्रभातफेरी निकाली। जबकि बंसत के गीतों के जयकारों से पूरा विद्यालय गुंजायमान रहे। अपर निदेशक महावीर बिष्ट ने कहा कि फूलदेई उत्तराखण्ड का पौराणिक व पारम्परिक लोकपर्व है। वर्तमान समय में यह पर्व विलुप्ति के कगार पर आ गया है। पारम्परिक विरासत से नई पीढ़ी को जोड़कर इसे संरक्षित करने की जरूरत है।