उत्तराखंड

मूल निवास व्यवस्था लागू होती तो नहीं होती हल्द्वानी घटना

प्रेस वार्ता

रुद्रप्रयाग। प्रदेश में मूल निवासी व्यवस्था लागू होती तो हल्द्वानी में हुई घटना न होती। मूल निवास, भू- कानून समन्वय संघर्ष समिति ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि पहाड़ की जमीन और संस्कृति तभी बच सकती है जब यहां के लोगों को उनका अधिकार मिल सके।

मजबूत भू कानून से बचेगी पहाड़ की जमीन और संस्कृति

मुख्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में सर्घष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि यदि प्रदेश में मजबूत भूमि कानून और मूल निवास लागू होता तो इस तरह की अप्रिय घटना नहीं होती। उन्होंने हल्द्वानी की घटना की कड़ी भर्त्सना करते हुए कहा कि देवभूमि की पहचान शांति की रही है। इस घटना के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और दंगाइयों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जिन बाहरी तत्वों को प्रदेश की शांति के लिए खतरा बताते हैं और जिनके खिलाफ सख्त एक्शन लेने की बात कह रहे हैं उन बाहरी तत्वों की पहचान कैसे की जाएगी। उन्होंने कहा कि मूल निवास और मजबूत भूमि कानून किसी भी बाहरी तत्व के खिलाफ सबसे असरदार हथियार है। कहा कि सत्ताधारी भाजपा हल्द्वानी के बहाने ध्रुवीकरण का प्रयास कर रह रही है जिससे लोगों का ध्यान मूल निवास और भू-कानून जैसे मुद्दों से हटाया जा सके। कहा कि अतिक्रमण के बहाने पहाड़ी क्षेत्रों में कई लोगों की दुकानें और मकान तोड़े गए, वहीं देहरादून में बसी अवैध बस्तियों को हटाने के बजाय उन्हें राहत देते हुए रातों-रात अध्यादेश लाया गया।

मूल निवास एवं भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने की प्रेस वार्ता

सरकार के दोहरे चरित्र को जनता समझने लगी है। उन्होंने यह भी कहा कि 18 फरवरी को कोटद्वार में मूल निवास स्वाभिमान महारैली निकाली जाएगी। यूकेडी जिलाध्यक्ष बुद्धिबल्लभ ममगाई, केंदीय मंत्री जितार सिंह जगवाण, समिति के कोर मेंबर प्रांजल नौडियाल ने कहा कि उत्तराखंड की अस्मिता तभी बचेगी, जब मूल निवास और मजबूत भू कानून लागू होगा। अभी हल्द्वानी में इस तरह की घटना हुई, आगे भी ऐसी घटनाओं की संभावना बनी रहेगी। डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद मूल निवास 1950 लागू न होना भाजपा सरकार को सवालों के घेरे में लाती है। सरकार जनता की हितैषी है तो विधानसभा में मूल निवास 1950 का विधेयक पारित करे। मूल निवास न होना सभी समस्याओं की जड़ है। आज बाहर के लोग हमारे संसाधनों को लूट रहे हैं। इसके लिए राष्ट्रीय दलों की नीतियां जिम्मेदार हैं।

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