
226 दिनों में 7 जिलों के 300 से अधिक गांवों का किया देवी ने भ्रमण
रुद्रप्रयाग। रुद्रप्रयाग जिले के दशज्यूला कांडई क्षेत्र की आराध्य देवी मां चण्डिका की दिवारा यात्रा अंतिम चरण में है। एक जून से महड़ गांव में चंडिका बन्याथ महायज्ञ का विधिवत शुभारंभ होगा। नौ दिवसीय महायज्ञ को भब्य बनाने के लिए इन दिनों क्षेत्रीय लोग तैयारियों में जुटे हैं। करीब नौ दशक बाद हो रहे महायज्ञ को लेकर क्षेत्रीय ग्रामीणों के साथ ही धियाणियों में खासा उत्साह का माहौल दिख रहा है।
बताते चलें कि बीते 15 अक्टूबर से महड़ गांव से शुरू हुई मां चंडिका की दिवारा यात्रा इन दिनों अंतिम चरण में भ्रमण कर रही है। मां अपने क्षेत्र के आसपास के गांवों का भ्रमण कर भक्तों की कुशलक्षेम पूछ रही है। वहीं भक्तजनों को महायज्ञ में आने के लिए निमंत्रण भी दे रही है। महड़ स्थित मंदिर शिवशक्ति मंदिर में आगामी एक जून से महायज्ञ शुरू होकर 9 जून तक चलेगा। बीते सोमवार को मां चंडिका ने महड़ गांव में महायज्ञ के लिए स्थान का चयन किया। जिसके बाद ग्रामीणों ने हवनकुंड तैयार एवं पांडाल लगाने का कार्य शुरू कर दिया है। इसके अलावा पानी, बिजली, पैदल मार्ग सुधारीकरण, मंदिर में साफ सफाई एवं सजाने का कार्य भी शुरू हो गया है।
चण्डिका दशज्यूला दिवारा समिति के अध्यक्ष धीर सिंह विष्ट और सचिव देवेन्द्र जग्गी ने बताया कि मां चंडिका ने दिवारा यात्रा के 226 दिनों में 7 जिलों के 300 से अधिक गांवों का भ्रमण कर भक्तों की कुशलक्षेम पूछी। इसके साथ ही चंडिका देवी ने पंचप्रयागों में स्नान सहित बद्री-केदार, हरिद्वार, उत्तरकाशी, त्रियुगीनारायण तीर्थ की यात्रा भी की। आगामी 1 जून को कुण्ड खातिक, गरूडछडा और अरूणि मंथन के साथ बन्याथ महायज्ञ का शुभारम्भ होगा। महायज्ञ में प्रतिदिन वैदिक परम्पराओं और विधिविधान के साथ माँ के सभी रूपों की पूजा अर्चना की जाएगी। 8 जून को भव्य जल कलश यात्रा एवं 9 जून को पूर्णाहुति के साथ इस महायज्ञ का समापन किया जाएगा। उन्होंने अधिक से अधिक भक्तों को महायज्ञ में पहुंचकर पुण्य अर्जित करने की अपील की है।
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यह है मां चंडिका के शिवशक्ति मंदिर की मान्यता-
महड़ दशज्यूला स्थित मां चण्डिका मन्दिर को पौराणिक मान्यताओं और लोक श्रृतियों के आधार पर 9 वीं सदी में स्थापित माना जाता है। शंकराचार्य कालीन मन्दिरों की भांति इस मन्दिर की स्थापना भी हिन्दूधर्म के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से की गई थी। भक्तों ने इस स्थान पर मन्दिर सूमहों का निमार्ण किया, जो आज भी देखे जा सकते हैं। इस मन्दिरों में भगवान शिव और मां चण्डिका सहित पंचकोटी देवताओं की पूर्तियां स्थापित है। मान्यता के अनुसार आगर गांव में नन्दा (बाल्य) के स्वरूप में आज भी पूजी जाती है। नन्दा ने गांव के ठीक ऊपर नैणी पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या करने के कारण नैणी देवी (युवाअवस्था) के स्वरूप में पूजी जाने लगी। जिसके बाद गाय के रूप में नैणी देवी महड पहुंचकर शिव की अर्धागनी बन गई। तथा शिवशक्ति के रूप में पूजी जाने लगी। तब से अब तक यहां पर शिव के साथ मां चंडिका भी पूजा अर्चना होने लगी। आगर गांव को मां चंडिका का मायका एवं महड़ गांव को ससुराल माना जाता है।