
मां सती के शरीर से निकलकर बने हैं 108 सिद्धपीठ: आचार्य प्रशांत
रुद्रप्रयाग। मुख्यालय स्थित पुंडेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित श्रीमद देवी भागवत कथा के सातवें दिन कथा व्यास आचार्य प्रशांत डिमरी ने कहा कि जब भी मनुष्य के भीतर मैं का भाव प्रकट हुआ तो वह उसके पतन का कारण बन सकता है। इसलिए अपने भीतर कभी भी अहम को पैदा न होने दें। कथा व्यास ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ और मां सती और शिव के प्रसंग की कथा सुनाई।
पुंडेश्वर मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए कथा व्यास ने कहा कि भगवान शंकर देवाताओं के भी देव हैं। उनका स्मरण हमें कष्टों से दूर रखता है। आचार्य प्रशांत डिमरी ने मां सती के भगवान शिव से मायके जाने के प्रसंग से लेकर दक्ष प्रजापति के यज्ञ और फिर भगवान शिव के तिरस्कार के फलस्वरूप अपने देह त्यागने की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि भगवान शंकर को जब इस बात की जानकारी हुई तो वे नाराज होकर अपने जटाओं को खोलकर पटकने लगे जिससे वीरभद्र और भद्रकाली का प्राकट्य हुआ।
कथा के सातवें दिन कथा व्यास ने सुनाई दक्ष प्रजापति और सती के प्रसंग की कथा
जब भगवान शंकर सती के शरीर को चारों दिशाओं में घुमाने लगे तो भगवान ब्रह्मा ने चक्र से शरीर के 108 टुकड़े कर दिए जिससे मां भगवती के 108 सिद्धपीठ हुए हैं। इस मौके पर उन्होंने भक्तों को अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण के लिए मंदिर पहुंचने का आह्वान किया है। इधर, कथा के मध्य में सुंदर भजन कीर्तन से माहौल भक्तिमय बना है। इस मौके पर पांडव एवं शिव समिति के अध्यक्ष प्रकाश गोस्वामी, सचिव सुनील नौटियाल, सह सचिव शैलेंद्र गोस्वामी ने बताया कि 14 फरवरी को पूर्णाहूति के साथ कथा का समापन किया जाएगा। इस मौके पर बड़ी संख्या में भक्त मौजूद थे।
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